छत्तीसगढ़ के जगरगुंडा में इन छोटी छोटी झोपड़ियों में बदहाली, बीमारी और बेबसी के बीच बैठे इन आदिवासियों के कहानी शुरू होती है 2005 से. एक छोटी सी कहानी को समझिए और फिर देखिए कि इन लोगों ने देश के लिए लड़ने की क्या कीमत चुकाई है. 2005 में छत्तीसगढ़ सरकार ने नक्सलियों के खात्मे के लिए आदिवासियों के एक फौज खड़ी की, जिसे स्थानीय भाषा में नाम दिया गया सलवा जुडूम यानी शांति का कारवां. सलवा जुडूम ने नक्सलियों को खदेड़कर बहुत छोटी इलाक़े तक सीमित कर दिया नक्सलियों से बचने के लिए आदिवासियों को कैम्पों में शरण लेनी पड़ी. देखें ये स्पेशल रिपोर्ट सिर्फ़ न्यूज़18 इंडिया पर.
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